कठपुतली (हिंदी की सबसे अच्छी कहानी)- Kathputli ki kahani in hindi:
तभी जासूस कहता है, “यदि वहाँ के लोगों के अंदर, किसी क़दर अपने ही धर्म के प्रति, नफ़रत पैदा कर दी जाए और उन्हें आपस में, जात पात में बाँट दिया जाए तो, शायद यह कर पाना संभव होगा क्योंकि, उनकी एकता की सबसे बड़ी वजह, उनका प्रकृति के सभी जीवों के प्रति, एक भाव है जिससे, वह एक दूसरे के प्रेम में, समर्पित रहते हैं| महिला अधिकारी, अपने देश के राष्ट्रपति से सलाह करने के बाद, इन्द्र नगर को बर्बाद करने के लिए, एक योजना बनाती है| जिसके तहत, इन्द्र नगर के, कुछ ऐसे बुद्धिजीवियों और कुछ फ़िल्म कलाकारों को, दौलत का लालच देकर, अपने साथ मिला लेती है जो, शिक्षा और मनोरंजन के क्षेत्र से, सीधे तौर पर जुड़े हुए थे| बुद्धिजीवियों ने, विदेशी देशों के हाथों कठपुतली बनते ही, सबसे पहले इन्द्र नगर के इतिहास को, बदलना शुरू कर दिया| जिसके तहत उन्होंने, इन्द्रनगर के पराक्रमी योद्धाओं को, इतिहास से बेदख़ल कर दिया और आक्रान्ताओं को, महान बताकर इन्द्र नगर की जनता को, भ्रमित कर दिया जिससे, वह आने वाले भविष्य में, अपना आत्म सम्मान खो बैठें और दूसरे देश के लोगों के मुक़ाबले, अपने आपको हीन भावना से देखना चालू कर दें और रही सही कसर, कुछ धार्मिक इतिहासकारों ने, अपने स्वार्थ के लिए, धर्म की भ्रमित करने वाली परिभाषा प्रस्तुत करके पूरी कर दी और यहाँ दूसरी तरफ़, फ़िल्मी कलाकारों ने, विदेशी साज़िश के तहत, ऐसी ऐसी फ़िल्मी कहानियों पर अभिनय किया जिससे, इन्द्र नगर के युवा, अपनी संस्कृति को भूलकर, विदेशी संस्कृति को अपना लें और वर्षों से चली आ रही, इंद्रनगर की सभ्यता, समाप्ति की ओर चली जाए| और हुआ भी ऐसा ही, एक दशक गुज़रते ही, विदेशी देशों ने, इन्द्र नगर की संस्कृति में अपना असर घोलना शुरू कर दिया और देखते ही देखते, इन्द्र नगर के युवा, बेरोज़गारी और भुखमरी की तरफ़ बढ़ने लगे क्योंकि, जिस देश में प्रकृति प्रेम के तहत कृषि को महत्व दिया जाता था, आज वहीं युवा, विदेशी तर्ज़ पर, मौज मस्ती की तरफ़, आकर्षित होने लगे थे और पढ़े लिखें युवाओं का रुझान, विदेशों में जाकर, नौकरियां करने की तरफ़ था| धीरे धीरे, युवाओं के अंदर फ़िल्मों का, ऐसा भूत सवार हुआ कि, वह अपनी संस्कृति को लगभग, पूरी तरह भूल गए| फ़िल्मों ने सबसे पहले, लोगों को जात-पात, ऊँचा-नीच, अमीर-ग़रीब और धर्म के आधार पर, बाँटने वाली कई फ़िल्में दिखाई, जिन फ़िल्मों ने, इन्द्र नगर की जनता को, एक दूसरे के प्रति नफ़रत करने पर मजबूर कर दिया| दरअसल, फ़िल्में समाज का आइना होती है इसलिए, फ़िल्मों ने इंद्र नगर की जनता के दिल और दिमाग़ पर, ऐसा असर डाला कि, वह अपने लोगों से नफ़रत करने लगे| जिसकी वजह से, जनसंख्या में इतनी अधिक आबादी रखने वाला देश, कई विदेशी साज़िश का शिकार हो गया और तो और, इसी कमज़ोरी का फ़ायदा उठाकर, पड़ोसी देशों ने सीधे तौर पर, इन्द्र नगर पर आक्रमण करके, ज़मीन के बहुत से क्षेत्रफल को क़ब्ज़ा कर लिया| जिसे वापस पाने के लिए, इंद्र नगर आज भी संघर्ष कर रहा है हालाँकि, इस बीच इंद्र नगर के बहुत से, सुरबीर योद्धाओं ने अपने साहस और पराक्रम से, राजनीति में बदलाव करके, इंद्र नगर को कभी पूर्णतः गुलाम नहीं बनने दिया| लेकिन फिर भी, विदेशी मुल्कों ने, इन्द्र नगर की ज़्यादातर आबादी को, अपनी कठपुतली बना ही लिया है और आज, इन्द्र नगर के लोग, विदेशी उत्पादों पर पूरी तरह निर्भर हो चुके हैं जिससे, इन्द्र नगर का आयात तो बढ़ रहा है लेकिन, निर्यात आज भी, अपने न्यूनतम स्तर पर है| जिसकी वजह से, इन्द्र नगर की अर्थव्यवस्था दिनोदिन कमज़ोर होती जा रही है| आज इन्द्रनगर की जनता, पूरी तरह से विदेशी देशों की, कठपुतली बन चुकी है| और धीरे धीरे अपने देश को, पतन की ओर धकेलती जा रही है| विदेशी मुल्क, अपनी साजिशों क़ामयाब होते जा रहे हैं क्योंकि, आज विदेशी मुल्क तकनीक का इस्तेमाल करके, इन्द्र नगर के लोगों को, पूरी तरह कठपुतली बना चुके हैं|
अब इन्द्र नगर के लोग, उसी मुद्दे पर चर्चा करते हैं, जिस पर विदेशी, सोशल मीडिया पर, ट्रेंड चला देते हैं| आज इन्द्र नगर के लोगों को, किसी भी दिशा में मोड़ना, आम बात हो चुकी है और अब विदेशी सोशल मीडिया के हाथों, कठपुतली बने रहना ही, इन्द्र नगर की फ़ितरत बन चुकी है|
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