किरण (Kiran)- प्रेरणादायक कहानी दिखाइए (moral stories for kids in hindi):
प्रेरणादायक कहानी दिखाइए– किरण का शाब्दिक अर्थ, प्रकाश होता है| दुनिया में हर इंसान, अपने दुखी जीवन को सँवारने के लिए, उम्मीद की एक किरण (Kiran) की तलाश में रहता है| ऐसी ही एक कहानी निशांत की है| वह चार साल से, एक लड़की से प्यार कर रहा था लेकिन, अचानक उनके रिश्ते में दरार आने की वजह से, वह अकेला पड़ गया था| प्रेम प्रसंग टूटने के बाद, निशांत गुमसुम सा रहने लगा| उसके पिता ने भी, कई बार उसे समझाने की कोशिश की लेकिन, उसके ऊपर अपने पिता की किसी भी बात का, कोई प्रभाव नहीं पड़ा| वह अपने अकेलेपन से प्यार करने लगा था| कई बार तो वह, सुबह सुबह अकेले ही सुनसान जगह पर घूमने निकल जाया करता था और सूरज डूबने के बाद ही, घर वापस आता| एक दिन निशांत, एक पहाड़ी पर अकेला घूम रहा था| उसे पेड़ के ऊपर एक ख़ूबसूरत सी लड़की दिखाई दी| निशांत को, उसे पेड़ के ऊपर देख, पहले तो अजीब लगा फिर, उसने उस लड़की को आवाज़ लगाकर, उसका नाम पूछा| लड़की ने उत्तर देते हुए कहा, “मैं एक परी हूँ और इस जंगल में अकेली रहती हूँ|” लड़की की बात सुनकर निशांत को थोड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन, उसके आस पास मौजूद प्रकाश की किरणों को देखकर, उसे परी पर विश्वास हो गया| निशांत ने आज तक इतनी ख़ूबसूरत लड़की नहीं देखी थी|
उसे देखते ही वह, उस पर मोहित हो गया और उसने परी से, शादी करने की इच्छा ज़ाहिर की| निशांत की बात सुनकर, परी ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं भी अपने जीवनसाथी की तलाश कर रही हूँ लेकिन, मुझे आज तक कोई भी ऐसा व्यक्ति नज़र नहीं आया जो, मेरे योग्य हो|” परी की बात सुनते ही, निशांत के मन में बहुत से सवाल उठने लगे| वह परी से कहता है कि, “ऐसी कौन सी क़ाबिलीयत, तुम्हें चाहिए जो, आज तक किसी के अंदर नहीं दिखी|” तभी परी ने कहा, “मैं चाहती हूँ कि, जो भी इंसान मुझसे शादी करे, उसका दिमाग़ मुझ पर केंद्रित होना चाहिए| यहाँ वहाँ अपने मन को भटकाने वाला इंसान, मेरी इच्छाओं पर खरा नहीं उतर सकता| जो व्यक्ति छः घंटे तक लगातार, बिना किसी विचार के, एक जगह स्थायी बैठ सकें, वही स्थिर बुद्धि वाला व्यक्ति ही, मेरा पति बनने योग्य होगा|” बस फिर क्या था, निशांत ने परी से शादी करने का मन बना लिया और उससे, कुछ समय माँगा ताकि, वह उसकी परीक्षा में उत्तीर्ण होकर उसे, अपनी पत्नी बना सके| परी ने उसे एक महीने बाद, उसी जगह आने को कहा| निशांत परी को वचन देकर वहाँ से चला गया| घर पहुँचकर, निशांत ने अपने कमरे में शांत बैठना शुरू कर दिया लेकिन, जब भी वह आँख बंद करके बैठता उसे, उसकी पहली प्रेमिका याद आने लगती और उसका ध्यान भटक जाता| कई दिनों तक, लगातार प्रयास करने के बावजूद भी, वह आधे घंटे भी, स्थाई नहीं बैठ पा रहा था| उसे समझ में आने लगा कि, परी की शर्त पूरी करना इतना आसान नहीं| निशांत ने अपना मन स्थिर करने के लिए, अलग अलग जगह जाकर प्रयास किया लेकिन, वह नाकाम रहा| एक दिन वह, अपने घर में बिस्तर में लेटा हुआ, एक छिपकली को देख रहा था| छिपकली काफ़ी देर से, बिना हिले डुले अपने शिकार का इंतज़ार कर रही थी| ताज्जुब की बात तो यह थी कि, छिपकली को अपने शिकार का, इंतज़ार करते हुए, लगभग तीन घंटे गुज़र चुके थे लेकिन, इस बीच उसने अपनी, पूँछ तक नहीं हिलायी और यही बात, निशांत को सोचने पर मजबूर करने लगी| उसे लग रहा था कि, “वह बिना हिले डुले, एक घंटे भी नहीं बैठ सकता लेकिन, छिपकली की स्थिरता तो, अद्भुत थी| निशांत ने तय किया कि, वह छिपकली पर ही ध्यान केंद्रित करेगा ताकि, वह उसी की तरह स्थिर हो सके और उसने तुरंत, दीवार में छिपकली का एक चित्र बनाया और उसे घूरने लगा|
धीरे धीरे प्रयास करने के बाद, निशांत की नज़रें छिपकली के चित्र पर टिकने लगी| लगातार छिपकली को घूरने से, आस पास की चीज़ें दिखाई देना बंद हो जातीं| कुछ ही दिनों के अंदर, निशांत ने अपनी स्थिरता को प्राप्त कर लिया और अब वह, बिना हिले पूरा दिन बैठा रहता| उसका ध्यान अटूट हो चुका था| ताज्जुब की बात तो यह थी कि, अब उसका परी से आकर्षण भी कम हो गया था और परी से शादी करने का भी उसका, कोई इरादा नहीं बचा और न ही, उसके दिल में उसकी पिछली प्रेमिका की जुदाई का दर्द बाक़ी था|
अब निशांत आनंदित रहना सीख गया था| फिर भी वह परी से मिलने, उसी पेड़ के पास पहुँचा और परी के सामने, हाथ जोड़कर खड़ा हो गया| परी उसके हालातों के बारे में पहले से जानती थी इसलिए, वह हंसते हुए निशांत से कहती है कि, “क्या अब भी तुम्हारा दुख मिटाने के लिए, किसी की ज़रूरत है?” निशांत की बुद्धि स्थिर हो चुकी थी| उसने परी की तरफ़ अचम्भे से देखते हुए कहा, “तुम्हें कैसे पता कि, मैं जब पहले तुम्हारे पास आया था तो, दुखी था और अब, नहीं|” परी ने कहा कि, “इस जगह पर आने वाले ज़्यादातर इन्सान, अपने अकेलेपन से परेशान होकर आते हैं और मैं, उनके दुःख को मिटाने के लिए, उनकी परीक्षा लेती हूँ जिसके परिणामस्वरूप, वह अपने पिछले दुखों से मुक्त हो जाते हैं और उनके जीवन को, एक नई दिशा मिलती है| यही मेरा काम है|” निशांत को परी की बात समझ में आ चुकी थी क्योंकि, अब उसे अपने अकेलेपन को मिटाने के लिए, किसी और की ज़रूरत नहीं थी बल्कि, वह स्वयं ही पूर्णता के साथ, आनंदित रहना सीख गया था और अब वह तैयार था, अपनी ज़िंदगी के प्रकाश की किरण को बिखेरने के लिए और इसी के साथ कहानी ख़त्म हो जाती है|