दुश्मनी (Friendship story in hindi with moral)- karan arjun ki kahani in hindi:
करण को स्कूल में, कोई भी इंसान दिखाई नहीं दे रहा था| करण भागते हुए गेट के पास जाकर, ज़ोर ज़ोर से आवाज़ लगाता है लेकिन, विद्यालय का क्षेत्रफल बहुत बड़ा था और सात दिनों की छुट्टी की वजह से, सिर्फ़ एक ही चौकीदार जोकि, स्कूल की बाउंड्री के बाहर तैनात था| कुछ देर तक, आवाज़ लगाने के बावजूद भी, जब करण को बाहर से कोई आता, दिखाई नहीं देता तो, वह भागते हुए, अर्जुन के पास पहुँचता है और अर्जुन को, स्कूल बंद होने की बात बताता है| अर्जुन, करण के साथ बाहर आकर गेट खोलने की कोशिश करता है| लेकिन गेट लोहे के मज़बूत सलाखों से बना था जिसे, खोल पाना इन बच्चों के बस की बात नहीं थी| बहुत कोशिश करने के बाद भी, जब गेट नहीं खुलता तो, दोनों हताश होकर वहीं बैठ जाते हैं| उन्हें स्कूल से बाहर निकलने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था| दोनों पहले से ही घायल थे| उन्हें आराम की सख़्त ज़रूरत थी लेकिन, उनके जीवन में एक नया संकट आ चुका था| हालाँकि, राहत की बात तो यह थी कि, दोनों के पास उनके खाने के टिफ़िन बॉक्स थे जिससे, उन्हें आज रात तक खाने की परेशानी नहीं थी| अर्जुन, करण से कहता है कि, “हमें मिलकर, यहाँ से बाहर निकलने का तरीक़ा सोचना चाहिए| अभी हमारे लड़ने का वक़्त नहीं|” करण भी, अर्जुन की बात से सहमत होता है| दोनों पहले, अपने अपने टिफ़िन से खाना खाते हैं| इतनी देर से, घर न पहुँचने की वजह से, दोनों के माता पिता स्कूल में आकर, बच्चों के बारे में पता करते हैं लेकिन, उन्हें बताया जाता है कि, “सभी बच्चे छुट्टी के बाद, स्कूल से जा चुके हैं| आपके बच्चे भी कहीं चले गए होंगे|” तभी दोनों के माता पिता, थाने पहुंचकर बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाते हैं| पुलिस शहर में, बच्चों को ढूंढने के लिए चक्कर लगाने लगती है लेकिन, सभी इस बात से अनजान थे कि, बच्चे स्कूल के अंदर ही बंद हैं| जैसे तैसे एक रात गुज़ारने के बाद, सुबह उठते ही करण और अर्जुन, इंतज़ार करने लगते हैं कि, सभी बच्चे आएंगे तो, स्कूल वैसे भी खुल जाएगा लेकिन, कई घंटों के बाद भी, जब स्कूल में कोई नहीं आता तो, दोनों घबराने लगते हैं| उन्हें एहसास होता है कि, शायद आज स्कूल की छुट्टी है|
वह तुरंत लाइब्रेरी पहुँच कर, स्कूल का टाइम टेबल चेक करते हैं| जहाँ उन्हें पता चलता है कि, स्कूल में सात दिनों का अवकाश रहेगा| दोनों इस बात से परेशान हो जाते हैं| अर्जुन को ज़ोर की भूख लगती है| वह बाहर पहुँच कर, खाने का इंतज़ाम करने की कोशिश करता है| क़िस्मत से, उसे कुछ बच्चों के टिफ़िन बॉक्स का, बचा हुआ खाना मिल जाता है| वह करण को, अपने साथ खाने को कहता है लेकिन, करण टिफ़िन का बचा हुआ खाना खाने से मना कर देता है| दोनों समय काटने के लिए, लाइब्रेरी से कुछ किताबें लेकर पढ़ने लगते हैं| दरअसल, उन्हें अंदर ही अंदर उम्मीद थी कि, “उनके घर वाले उन्हें ढूंढते हुए, स्कूल तक ज़रूर आएंगे|” करण एक बार फिर, दरवाज़े को तोड़ने की नाकाम कोशिश करता है लेकिन, थोड़ी ही देर में उसे समझ में आ जाता है कि, “अब ये लोग, किसी बाहर वाले की मदद के बिना, यहाँ से नहीं जा सकते हैं|” कुछ देर में, करण को भी तेज़ी से भूख लगने लगती है| वह अर्जुन के पास जाकर, वहीं बच्चों का बचा हुआ खाना, मानता है| अर्जुन मुस्कुराते हुए, करण को खाना खिलाता है| इसी तरह दोनों, स्कूल के अंदर तीन दिन गुज़ार देते हैं| दोनों की हालत ख़राब होती जा रही थी लेकिन, दोनों की दुश्मनी, अब दोस्ती में बदल चुकी थी| इस बुरे वक़्त ने, दोनों को इतना क़रीब ला दिया था कि, दोनों को एक दूसरे की तक़लीफ का एहसास होने लगा था| अगर करण को कठिनाई होती तो अर्जुन उसकी मदद करने, उसके पास पहुँच जाता और अगर, अर्जुन को तक़लीफ़ होती तो, करण| चौथे दिन, चौकीदार स्कूल के गार्डन में सिंचाई कर रहा था| अचानक, टंकी में पानी ख़त्म हो जाता है| वह मोटर चालू करने के लिए, स्कूल के अंदर दाख़िल होता है| करण और अर्जुन गंभीर हालत में बाहर बैठे हुए थे अचानक, उन्हें गेट के पास किसी की आहट सुनाई देती है| दोनों धीरे धीरे, गेट तक पहुँचते हैं और जैसे ही, उन्हें गेट खुलता दिखाई देता है| वह एक दूसरे को गले लगाकर, चिल्लाने लगते हैं| चौकीदार बच्चों को, स्कूल के अंदर बुरी हालत में देखता है| वह तुरंत स्कूल के शिक्षकों को, बच्चों के मिलने की जानकारी देता है| कुछ ही देर में, शिक्षकों के साथ पुलिस भी, स्कूल पहुँच जाती है| बच्चों की इस हालत का ज़िम्मेदार, स्कूल प्रबंधन की लापरवाही को, माना जाता है और सज़ा के तौर पर, स्कूल प्रबंधक को, निलंबित कर दिया जाता है| इस हादसे ने करण और अर्जुन की सोच को बदल दिया था|