पहेली (Paheli)-जीवन बदलने वाली कहानी (stories in hindi for kids):
कभी कभी हमारी ज़िंदगी, एक ऐसे मुहाने पर आकर खड़ी हो जाती है जो, एक पहेली (Paheli) बन जाती है| ऐसी ही एक कहानी (hindi stories), कुमारपुर गाँव की है जहाँ, एक ज़मींदार रहते थे| उनका एक ही बेटा था जो, शहर में पढ़ाई कर रहा था| जमीदार काफ़ी समय से बीमार चल रहे थे| उन्होंने अपना इलाज कराने के लिए, कई अस्पतालों का दौरा किया लेकिन, उनकी बीमारी बढ़ती जा रही थी| उन्हें चिंता थी तो सिर्फ़, अपनी ख़ानदानी संपत्ति की| दरअसल, उन्हें डर था कि, उनके जाने के बाद, उनकी पत्नी अकेली हो जाएगी और उनका बेटा सूर्या, अभी पढ़ाई कर रहा है और वह खेती करने के बारे में कुछ नहीं जानता| फिर भला कौन, इतनी बड़ी संपत्ति को ज़िम्मेदारी से सँभालेगा? यह चिंता सूर्या के पिता को खाए जा रही थी और यहाँ सूर्या, अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए, कंपनियों की ख़ाक छान रहा था| उसकी पढ़ाई का अंतिम वर्ष था| इसके बाद उसे कोई न कोई नौकरी तो, करनी ही थी| सूर्या के पास दौलत की कोई कमी नहीं थी| वह नौकरी पैसों के लिए नहीं करना चाहता था बल्कि, वह अपने जीवन के आधार को स्थापित करने के लिए, काम की तलाश कर रहा था और इसी दौरान उसे, एक कंपनी में सहायक प्रबंधक के पद पर, नियुक्ति मिली लेकिन, इस कंपनी की हालत साल दर साल, बिगड़ती जा रही थी| कंपनी के मालिक ने, अपनी कंपनी को संभालने का बहुत प्रयास किया लेकिन, यहाँ अब कोई काम करने को तैयार नहीं था| कई महीनों से, मज़दूरों का दैनिक भत्ता रोक दिया गया था इसलिए, मज़दूर भी काम करने को तैयार नहीं थे लेकिन, सूर्या ने नौकरी के पहले ही दिन, कंपनी के मालिक का दिल जीत लिया| सूर्या ने अपनी बातों से, एक घंटे के अंदर ही मज़दूरों को दोबारा काम करने के लिए, राज़ी कर लिया था| उसकी समझदारी को देखते हुए, कंपनी के मालिक ने उसे, अपने केबिन में बुलाया और उसे कम्पनी के हालात से अवगत कराया| पूरी बात समझने के बाद, सूर्या कंपनी के मालिक से कहता है, “आप चिंता ना करें, मैं अपनी पूरी जान लगा करके भी, इस कंपनी को बचाऊँगा|

बस आप किसी तरीक़े से, मज़दूरों के पैसे न रोकें क्योंकि, वही हमारे कारख़ाने की रीढ़ हैं| उनके बिना कारख़ाना चला पाना असंभव है| तभी कंपनी के मालिक ने, अपनी समस्याएं गिनाते हुए, कंपनी के कर्ज़ में डूबे हुए होने की बात बतायी| कंपनी लंबे समय से, घाटे में चल रही है जिसके लिए, कंपनी मालिक ने कई संस्थाओं से कर्ज़ ले रखा है और जिसका ब्याज, दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है| कंपनी मालिक ने पहले से ही तय कर रखा था कि, यदि यह कम्पनी नहीं चल सकी तो, वह इसे बेच देगा लेकिन, वह मज़दूरों की वजह से कारख़ाना बंद नहीं होने देना चाहता था| इसी कड़ी में सूर्या भी, कंपनी मालिक के साथ जुड़ चुका था और उसने तय किया कि, वह कंपनी के विक्रय को बढ़ाने के लिए, ख़ुद डीलर्स के पास जाएगा और उन्हें, अपनी फै़क्टरी का माल बेचने के लिए, प्रोत्साहित करेगा| बस फिर क्या था, सूर्या ने अपनी मेहनत का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया और कुछ ही महीनों में, उत्पादों का विक्रय बढ़ने लगा| देखते ही देखते कारख़ाने के मज़दूर में आत्मविश्वास बढ़ गया लेकिन, इसी बीच सूर्या के पिता की मृत्यु हो जाती है| उसे अचानक, अपने गाँव वापस जाना पड़ता है| वह कंपनी की कार लेकर, अपने गाँव पहुँचता है और वहाँ पहुँचकर, अपने पिता का अंतिम संस्कार करता है| पति के जाने के बाद, सूर्या की माँ अकेली हो चुकी थी इसलिए, वह उन्हें अपने साथ शहर ले जाना चाहता है लेकिन, सूर्या की माँ उससे कहती है, “बेटा मैं शहर जाकर क्या करूँगी| यहाँ तेरे पिता की इतनी बड़ी खेती कौन कराएगा बल्कि, मैं तो कहती हूँ कि तू भी, अपनी नौकरी छोड़कर, गाँव आ जा| मुझे यहाँ तेरी ज़रूरत है| आख़िर तू इस संपत्ति का इकलौता वारिस है| तुझे ही इसकी ज़िम्मेदारी संभालनी होगी|” सूर्या की ज़िंदगी उसके सामने पहेली की तरह उलझ चुकी थी| एक तरफ़ उसकी बेसहारा माँ को, उसकी ज़रूरत थी और दूसरी तरफ़ सैकड़ों मज़दूरों की ज़िंदगी, सूर्या के कंधों पर टिकी हुई थी| सूर्या तय नहीं कर पा रहा था कि, वह बरसों पुरानी चली आ रही परंपरा के तहत, अपनी ख़ानदानी संपत्ति संभालें या मज़दूरों की ज़िम्मेदारी जो, उसने स्वयं अपने कंधों पर उठायी थी| सूर्या की ज़िंदगी दो मुहानों पर आकर खड़ी हो चुकी थी| जहाँ उसे अपनी ज़रूरतों की चिंता नहीं थी बल्कि, चिंता तो इस बात की थी कि, उसके किसी भी निर्णय से उसे भविष्य में पछताना न पड़े| सूर्या अपनी माँ को शहर चलने के लिए मना ही रहा था कि, उसी वक़्त उसे फ़ैक्टरी के मालिक का फ़ोन आता है जिसमें, वह बताता है कि, फ़ैक्टरी में दुर्घटना बस आग लग चुकी है जिससे, कई मज़दूर क्षतिग्रस्त हुए हैं और फै़क्टरी को, करोड़ों रुपया का घाटा लगा है| कंपनी को पैसों की ज़रूरत है नहीं तो, कम्पनी बंद करना पड़ेगा|

ख़बर सुनते ही, सूर्या के सपने चूर चूर हो चुके थे| सूर्या अपनी माँ को अकेला छोड़कर, अपने मज़दूरों के लिए, शहर निकल जाता है| लंबे सफ़र के बाद, रास्ते में उसे भूख लगती है इसलिए, वह सड़क के किनारे एक ढाबे पर खाना खाने के लिए रुकता है| ढाबे के अंदर पहुँचते ही, वह हैरान हो जाता है क्योंकि, यह ढाबा राहगीरों के लिए नि शुल्क था| उसे समझ में ही नहीं आता कि, “स्वार्थ की इस दुनिया में भला यह क्यों, राहगीरों को फ़्री में खाना खिला रहा है?” सूर्या ने इसका कारण जानना चाहा| सूर्या को पता चला कि, ढाबे के मालिक ने अपनी सारी संपत्ति बेचकर, यहाँ ढाबा खोला है जो, परोपकार की भावना से खोला गया है| उसकी दरियादिली की भावना से ओतप्रोत होकर सूर्या, ढाबे के मालिक से मिलने के लिए, उसके घर पहुँच जाता है| वहाँ सूर्या देखता है कि, एक व्यक्ति बहुत से बंदरों को अपने हाथ से, रोटियां खिला रहा है|

वह तुरंत उनके पास पहुंचकर पूछता है, “आपको इनसे डर नहीं लगता|” वह व्यक्ति मुस्कराते हुए कहता है, “ये तो मेरा परिवार है| भला इनसे क्या डरना|” सूर्या को लगता है कि, शायद यही ढाबे के मालिक हैं इसलिए, वह उनसे कहता है कि, “आख़िर क्यों आपने अपनी सारी संपत्ति बेचकर, इन सब कामों में लगा दिया| आपके पूर्वज इस बात से दुखी नहीं होंगे?” तभी उन्होंने सूर्या की बात का जवाब देते हुए कहा, “मेरी संपत्ति तो, वक़्त के साथ टुकड़ों में बँट के, ख़त्म हो जाती लेकिन, जीतेजी मैंने जो नि शुल्क खाना खिलाने की परंपरा शुरू की है, वह निरंतर चलती रहेगी| मेरे बाद कोई और आएगा जो, उस काम को आगे बढ़ाएगा लेकिन, अगर मैं, अपनी संपत्ति बचाए रखता तो, वह मेरे बाद कई टुकड़ों में बंट कर नष्ट हो जाती है और मेरा अस्तित्व हमेशा के लिए मिट जाता इसलिए, मैंने अपनी संपत्ति का इस्तेमाल करके, ऐसी परंपरा की स्थापना की जिससे, मेरे पूर्वजों को शांति मिलती रहेगी|” सूर्या को उसकी पहेली (Paheli) का जवाब मिल चुका था| सूर्या ने वही से, अपने कंपनी के मालिक को फ़ोन लगाकर कहा, “आप पैसों की चिंता मत करिए| मैं फ़ैक्टरी को बंद नहीं होने दूँगा और फिर क्या था, सूर्या ने अपने हिस्से की सारी संपत्ति बेच दी और अपनी माँ को, कम्पनी के मज़दूरों के हालात का हवाला देकर, शहर ले आया| संपत्ति बेचने से, सूर्या के पास करोड़ों रुपया इकट्ठा हो चुका था जिसे, उसने डूब रही कंपनी को बचाने के लिए, समर्पित कर दिया और कुछ ही सालों के अंदर, कम्पनी फिर से अपने पैरों पर खड़ी हो गई| कंपनी के मालिक ने सूर्या की मेहनत और लगन देखकर, उसे कंपनी का हिस्सेदार बना दिया| सूर्या आज कई मज़दूरों के घर चलाने का माध्यम बन चुका है और इसी परंपरा के जन्म के साथ ही, कहानी ख़त्म हो जाती है|