लकड़हारे का कबूतर – (बच्चों की कहानी दिखाइए) प्रेरणादायक कहानी छोटी सी हिन्दी में
बच्चों की कहानी दिखाइए– ये प्रेरणादायक कहानी एक कबूतर की है| जिसने जंग के मैदान में, अपने साहस से पूरे राज्य को, संकट से बचा लिया| एक पहाड़ी के ऊपर, विक्रमपुर नाम का छोटा सा राज्य था| जहाँ का राजा, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ था| उसी राज्य में, एक लकड़हारा रहता था| जिसके पास एक पालतू कबूतर था| कबूतर बहुत ही होशियार था| राज्य की जनसंख्या कम होने के कारण, लगभग सभी, उस कबूतर के हुनर से परिचित थे| लकड़हारे ने, अपनी दी हुई शिक्षा की बदौलत, कबूतर को राज्य का सर्वश्रेष्ठ संदेशवाहक बना दिया था| कबूतर राज्य के अंदर, एक दूसरे के संदेश पहुँचाने का, काम किया करता था जिससे, लकड़हारे की थोड़ी आमदनी हो जाती थी| एक दिन, राजा को लकड़हारे के कबूतर के कारनामों के बारे में, पता चला| राजा ने, लकड़हारे को राज्य में पेश करने का आदेश दिया| राजा का आदेश मिलते ही, कुछ ही घंटों में सैनिक, लकड़हारे को उसके कबूतर के साथ, राज्य में ले आते हैं| सैनिकों के ज़बरदस्ती लाए जाने पर, लकड़हारे को राजा पर नाराज़गी होती है लेकिन, वह राजा से कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता| राजा लकड़हारे से कहते हैं कि, “मैं तुम्हारे कबूतर को, इस राज्य का शाही कबूतर बनाना चाहता हूँ| कहो, तुम अपने कबूतर की, क्या क़ीमत लेना चाहते हो?” लकड़हारे को, राजा का प्रस्ताव उलझन में डाल देता है क्योंकि, यदि वह राजा को, अपना कबूतर देने से मना करता तो, राजा नाराज़ हो सकते हैं और यदि, ऐसा हुआ तो, लकड़हारे का राज्य में रहना मुश्किल हो जाएगा| लकड़हारा, संकोच में राजा को, अपना कबूतर देने के लिए, मान जाता है लेकिन, वह इसके बदले, कोई भी धन राशि लेने से, इनकार कर देता है| वह कहता है कि, “यह कबूतर ही मेरी दुनिया है और यदि, आप इसे ही ले रहे हैं तो, मेरे लिए कोई भी चीज़, मूल्यवान कैसे होगी|” राजा ईमानदार और अपनी जनता से, प्यार करने वाला था इसलिए, उसे लकड़हारे की बात सुनते ही, अपने स्वार्थ का चेहरा नज़र आ जाता है| वह दरबार में, सबके सामने कहता है, “एक राजा का कर्तव्य, अपनी जनता का शोषण करना नहीं, बल्कि भरण पोषण करना है| मैं लकड़हारे की मर्ज़ी के बिना, उसका कबूतर कैसे ले सकता हूँ|” राजा तुरंत, अपने सैनिकों को आदेश देता है कि, “लकड़हारे को बाइज़्ज़त, उसके कबूतर के साथ, कुछ उपहार देकर विदा किया जाए|” लकड़हारा, राजा के इस फ़ैसले से ख़ुश हो जाता है और राजा की जय जयकार करने लगता है| राजा ने अपनी जनता के प्रति, प्रेम और समर्पण का एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया था जिससे, जनता के बीच में, राजा के इस फ़ैसले की चर्चाएँ होने लगती है| सभी राजा को महान बताने में लगे हुए थे लेकिन, वहीं एक दुश्मन राज्य, विक्रमपुर में हमले की तैयारी करने में, जुटा हुआ था| विक्रमपुर के राजा, इस बात से बिलकुल बेख़बर थे क्योंकि, उन्होंने हमेशा सभी राजाओं से, मित्रतापूर्ण व्यवहार किया था| उनकी नीति, किसी भी राज्य को नुक़सान पहुँचाने की नहीं थी| एक दिन लकड़हारा, पहाड़ी से नीचे उतरकर लकड़ी काटने के लिए जंगल पहुँचता है|
यहाँ उसकी नज़र, बहुत से घोड़ों पर पड़ती है| घोड़े पेड़ों में, रस्सियों की सहायता से, बँधे हुए थे| लकड़हारे को, यह नज़ारा काफ़ी अजीब लगता है इसलिए, वह धीरे धीरे आगे बढ़ता है| तभी, उसे कुछ लोग जंगल में आग जलाकर, बैठे हुए दिखाई देते हैं| लकड़हारे को इन लोगों पर श़क होता है क्योंकि, यह जंगल, विक्रमपुर के इलाक़े में आता था और इन लोगों की भेस भूसा एक दम अलग थी| लकड़हारा, उन्हें छुपकर देख ही रहा था कि, एक व्यक्ति अचानक लकड़हारे को, पीछे से आकर पकड़ लेता है और उसे, घसीटते हुए सभी के बीच ले जाकर, गिरा देता है| लकड़हारा काफ़ी डर जाता है| वह ज़ोर ज़ोर से चीखने लगता है| तभी एक सैनिक, लकड़हारे को चुप करवाते हुए कहता है कि, “तुम चीखना बंद करो और हमें ये बताओ कि, हम विक्रमपुर में क़ब्ज़ा कैसे कर सकते हैं|” सैनिक के इस प्रश्न से लकड़हारे को, सारी बात समझ में आ जाती है| वह अपने राज्य के प्रति वफ़ादार नागरिक था| वह अपने राज्य को अपनी आँखों के सामने ग़ुलाम बनते नहीं देख सकता था| उसने तय किया कि, “किसी भी क़ीमत पर वह सैनिकों के सामने, अपनी जवान नहीं खोलेगा|” लकड़हारा सैनिकों के सामने, न बोल पाने का अभिनय करने लगता है| सैनिकों को लगता है कि, “यह व्यक्ति गूँगा है” इसलिए, वह उसे एक पेड़ से बाँध देते हैं और अपने काम में लग जाते हैं| कुछ देर बाद, लकड़हारे का कबूतर उसके कंधे में आकर बैठता है| लकड़हारा कबूतर को निर्देश देता है कि, कबूतर राजा के पास जाकर, उन्हें इस ख़तरे से आगाह करें| कबूतर बहुत होशियार था| वह तुरंत उड़ते हुए, राजा के पास पहुँचता है| राजा दरबार के बीचों-बीच बैठे हुए, नृत्य का मज़ा ले रहे थे लेकिन, जैसे ही उनकी नज़र कबूतर पर पड़ती है| वह नृत्य रोक देते हैं| कबूतर राजा के हाथों में बैठ जाता और अगले ही पल, दरबार के अंदर उड़ने लगता है| राजा तुरंत अपने मंत्री से, इसकी वजह पूछते हैं| राज्य के मंत्री, लकड़हारे के कबूतर की बुद्धिमानी से परिचित थे इसलिए, वह कहते हैं कि, “महाराज यह कबूतर बेवजह किसी के पास नहीं आता| इसके आने का कोई न कोई, कारण ज़रूर होगा| इसलिए, हमें इसका पीछा करना चाहिए, शायद यह हमसे कुछ बताना चाहता है|” राजा को अपने मंत्री की बात उचित लगती है| वह अपने सैनिकों के साथ, कबूतर का पीछा करने लगते हैं|
कबूतर पहाड़ी के नीचे, जंगल की ओर जा रहा था| राजा अपने सैनिकों से, जंगल की तरफ़ चलने को कहते हैं| अचानक, राजा को दुश्मन राज्य की सेना, नज़र आ जाती है| जिन्हें देखते ही राजा, कबूतर का इशारा समझ जाते हैं| वह तुरंत अपने सैनिकों से, पूरी सेना जंगल में उतारने को कहते हैं और कुछ ही घंटों के अंदर, दुश्मन राज्य के सैनिकों को, गिरफ़्तार कर लिया जाता है| विक्रमपुर के सैनिकों को, जैसे ही लकड़हारा दुश्मनो के चंगुल में दिखाई देता है| वह राजा से बताते हैं कि, यह तो अपने राज्य का ही नागरिक है और यह कबूतर भी, इसी का है| हालाँकि, राजा पहले ही लकड़हारे से मिल चुके थे इसलिए, वह उसे पहचान जाते हैं| राजा लकड़हारे की राज्य के प्रति वफ़ादारी से ख़ुश होकर, उसे अपने राज्य का सम्माननीय नागरिक घोषित कर देते हैं और उसके कबूतर को, बहादूर सैनिक का दर्जा दिया जाता है जिससे, दोनों का जीवन बदल जाता है|