भरोसा (Bharosa) बच्चों की कहानी स्टोरी- बेडटाइम स्टोरी फॉर किड्स इन हिंदी:
भरोसा, निर्भरता का दूसरा नाम है| इस प्रकृति की किसी भी विषय वस्तु पर, बिना विचारे भरोसा (Bharosa) करना घातक हो सकता है| यह एक ऐसी कहानी है जिसे पढ़कर, विद्यार्थियों को मनोरंजन के साथ जीवन का भी अद्भुत ज्ञान प्राप्त होगा| एक जंगल में बहुत बड़ा तालाब था| तालाब के अंदर बहुत सी मछलियाँ रहती थी| एक दिन तालाब के किनारे, कुछ मछुआरे मछली पकड़ने पहुँचे| जैसे ही, एक मछली ने उन्हें देखा| वह घबरा गई| उसने तुरंत बाक़ी मछलियों को, मछुआरों के ख़तरे से आगाह किया| अपनी जान बचाने के लिए, मछलियाँ तालाब के दूसरी ओर भागने लगी लेकिन, तब तक मछुआरों ने तालाब के एक ओर की कई मछलियाँ, जाल के माध्यम से पकड़ ली थीं जैसे ही, तालाब के सभी जीवों को मछलियों को पकड़े जाने की बात पता चली तो, वह दुखी हो गए| दरअसल आज से पहले, इस तालाब पर किसी भी जीव को पकड़कर नहीं ले जाया गया था और न ही, उनके जीवन को कोई ख़तरा था| आज पहली बार यह तालाब मछुआरों की नज़र में आया था| मछलियाँ अब समझ चुकी थीं कि, उनका जीवन संकट में फँस चुका है|
अगले दिन मछुवारे फिर से, अपना जाल लेकर तालाब पहुँचे लेकिन, इस बार मछलियाँ पहले से ही सचेत थीं| सभी मछुआरों के आते ही, तालाब के दूसरी ओर पहुँच गई| जब काफ़ी देर तक कोशिश करने के बावजूद, उनके जाल में एक भी मछली नहीं फँसी| तब उन्होंने सोचा कि, “शायद तालाब में मछलियाँ नहीं बची है| अब उन्हें किसी और जगह जाकर, मछलियां ढूँढना चाहिए|” सभी मछुआरे जंगल से बाहर निकल गए| मछुआरों के वापस चले जाने से, मछलियाँ खुशियां मनाने लगी हालाँकि, उन्होंने अपने कुछ साथियों को खो दिया था लेकिन, ज़्यादातर मछलियाँ, मछुआरों से अपनी जान बचाने में क़ामयाब हो चुकी थीं| अगले दिन एक लकड़हारा, लकड़ियों की तलाश में जंगल के उसी तालाब के किनारे पहुँचा और वहीं बैठकर खाना खाने लगा| कुछ देर बाद, उसने रोटी का एक टुकड़ा तालाब में फेंक दिया| अचानक, एक मछली रोटी का टुकड़ा लेकर, पानी के अंदर घुस गई| लकड़हारे को मछलियों को खाना खिलाकर मज़ा आने लगा| उसने धीरे धीरे करके अपना सारा खाना मछलियों को खिला दिया| लकड़हारा जीवों के प्रति सहानुभूति रखता था| लकड़हारे की दरियादिली देखकर, मछलियों को बहुत ख़ुशी हुई| उन्हें लगा, “चलो दुनिया में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन पर, भरोसा किया जा सकता है|” कुछ देर बाद लकड़हारा, लकड़ियां एकत्रित करके जंगल से बाहर निकल गया| जंगल के बाहर उसकी मुलाक़ात, उन्हीं मछुवारों से हुई| मछुआरों ने लकड़हारे से कुछ लकड़ियाँ माँगी| लकड़हारे ने उन्हें लकड़ियाँ दे दी| बातों बातों में लकड़हारे ने तालाब में मछलियों को खाना खिलाने वाली बात, मछुआरों से बता दी| मछुआरों ने उससे कहा, “इस जंगल में एक भी मछलियाँ नहीं बचीं फिर, तुम कैसे कह सकते हो कि, तुमने जंगल के तालाब की मछलियों को खाना खिलाया है?” मछुआरों की बात सुनकर, लकड़हारा हँसने लगा| उसे हँसता देख मछुवारों ने कहा, “तुम हमारी लाचारी का मज़ाक उड़ा रहे हो?” तभी लकड़हारे ने उन पर भरोसा करके उन्हें बताया कि, “कुछ देर पहले उसने वाक़ई में तालाब में बहुत सी मछलियाँ देखी है और वह उन्हें खाना भी खिलाकर आया है| फिर भला आप लोगों को मछलियाँ कैसे नहीं दिखाई दीं| बस फिर क्या था, मछुआरों को मछलियों की चाल का पता चल गया| अगले दिन मछुवारे जंगल पहुँचे और धीरे से छुपकर, लकड़हारे की तरह तालाब में खाना फेंकने लगे| खाना देखते ही मछलियाँ बिना सोचे समझे खाने पर टूट पड़ीं| उसी दौरान मौक़े का फ़ायदा उठाकर, मछुआरों ने सारी मछलियों को, अपने जाल में क़ैद कर लिया और उन्हें जंगल से बाहर ले आए|
मछलियों ने जिस लकड़हारे को अपने विश्वास का आधार माना| उसी ने, उनका जीवन संकट में डाल दिया और इसी शिक्षा के साथ यह कहानी ख़त्म हो गई|