संगत (Sangat) (Kids Moral Story)- सीख देने वाली कहानी:
सीख देने वाली कहानी– साथ यानी संगत (Sangat), दोस्तों किसी भी व्यक्ति की संगत, तय करती है कि, उसका जीवन कैसा होगा? कुछ किताबों में आपने पढ़ा भी होगा, हर इंसान उन पाँच लोगों की तरह बनता है, जिनकी वह सबसे ज़्यादा संगति करता है| इस वाक्य से प्रेरित होकर, संगति का प्रभाव समझाने के लिए, एक बच्चों की कहानी (Kids Moral Story) प्रस्तुत है| मुझे आशा है कि, यह कहानी आपको मार्गदर्शित करेगी| शहर में एक बहुत ही बड़ा स्कूल था, जिसमें कई बड़े बड़े नामी रईसों के बच्चे पढ़ते थे| उन्हीं बच्चों में, सोनू नाम का एक लड़का पड़ता था| सोनू एक ग़रीब परिवार का बच्चा था| वह सरकारी शिक्षण अनुदान की वजह से, उस स्कूल में पहुँचा था| दरअसल स्कूल में 5 प्रतिशत ग़रीब बच्चों को आरक्षण दिया गया था, जिसकी वजह से सोनू इतने बड़े स्कूल में पढ़ पा रहा था| सोनू के लिए यह स्कूल किसी स्वर्ग से कम नहीं था| वह पांचवीं क्लास तक गाँव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ रहा था और वहीं परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने से, उसे छात्रवृत्ति प्राप्त हुई थी| इसी कक्षा में एक और लड़का था, जिसका नाम रॉनी था| उसके पिताजी शहर के सबसे बड़े रईस इंसान थे| रॉनी और सोनू अग़ल बग़ल बैठते थे| कुछ ही दिनों में दोनों के बीच, गहरी मित्रता हो चुकी थी| हालाँकि रॉनी को पढ़ाई में ज़्यादा रुचि नहीं थी| उसके पास एक से एक खिलौने होते थे| वह प्रतिदिन कोई न कोई खिलौना, अपने बैग में लेकर स्कूल आ जाता था|
एक दिन उसका खिलौना, एक शिक्षक द्वारा जप्त कर लिया जाता है| रॉनी बहुत ग़ुस्सा होता है और स्कूल में ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगता है| रॉनी का बर्ताव बहुत अड़ियल था| उसे शांत करने के लिए, उसके पिता को विद्यालय बुलाया जाता है, लेकिन उसके पिता आते ही, शिक्षकों को डाँटते हैं और कहते हैं, “बच्चे अगर थोड़ा बहुत खिलौना खेलते है तो, क्या परेशानी है| शिक्षकों ने अपनी दलील देते हुए कहा, “सर ये स्कूल है और यहाँ सभी बच्चे एक सामान रहते हैं| अगर खेल का समय होगा तो, सभी के लिए होगा| हम केवल आपके बच्चे को खिलौने लाने की इजाज़त दे दें तो, ऐसे में विद्यालय का अनुशासन बिगड़ जाएगा”| लेकिन रॉनी के पिता शिक्षकों की किसी दलील पर रजामंद नहीं होते और उन्हें हिदायत देते हैं कि, “दोबारा आप मेरे बच्चे को मत डांटना”| सारा मामला सोनू देख रहा था| वह रॉनी से कहता है, “तुम्हें अपने पापा को नहीं बुलाना चाहिए| गलती तो तुम्हारी थी न”| रॉनी, सोनू को ग़ुस्से से देखता है और स्कूल से अपने पापा के साथ चला जाता है| अगले दिन रॉनी देरी से स्कूल आता है, लेकिन उसके पिताजी की वजह से, कोई शिक्षक उसे कुछ नहीं कहता| सोनू और रॉनी के रास्ते बदल चुके थे| धीरे धीरे रॉनी की संगत (Sangat) भी बदलने लगती है| रॉनी स्कूल के बाहर के लड़कों के साथ रहने लगता है| कई बार वह अपने साथ सोनू को भी चलने को कहता है, लेकिन सोनू को किताबों के अलावा और कुछ दिखाई नहीं देता था| उसे पढ़ाई में बहुत रुचि थी और इसी तरह छह-सात साल गुज़र जाते हैं| सोनू और रॉनी, अब बड़े हो चुके थे| सोनू ने स्कूली परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त किए थे, इसलिए उसका एक अच्छे कॉलेज में चयन हो जाता है और सोनू के कॉलेज को देखकर, रॉनी भी अपने पापा के पैसों के दम पर, उसी कॉलेज में दाख़िला ले लेता है| सोनू को अब रॉनी बिलकुल पसंद नहीं था, लेकिन बचपन की दोस्ती की वजह से, वह रॉनी से बात कर लेता था| सोनू अच्छे से जानता था कि, रॉनी उसकी तरह नहीं है| वह बिगड़ चुका है और उसे समझाना नामुमकिन है| वह उसे, उसी के हाल में छोड़ना बेहतर समझता है| एक दिन रॉनी स्कूल के पिछले कमरे में, धूम्रपान कर रहा होता है| सोनू वही से गुज़रते हुए, उसे देख लेता है| वह रॉनी को जोर से चिल्लाता है और कहता है, “तुम्हें यह सब करना है तो, कॉलेज के बाहर जाकर करो| ये करके तुम अपना भविष्य तो, बर्बाद कर ही रहे हो, साथ में औरों का भी करोगे”| रॉनी, सोनू को मुस्कुराते हुए देखता है और कहता है, “जा यार तू अपना काम कर”|
लेकिन सोनू वहाँ से जाने को मना कर देता है और कहता है, “जब तक तुम यह बंद नहीं करोगे, मैं यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगा”| रॉनी अपने होशोहवास में नहीं था, इसलिए वह अपने आपे से बाहर हो जाता है और सोनू को ज़ोर से धक्का देता है| सोनू वहीं गिर जाता है और उसे थोड़ा चोट लग जाती है| सोनू को गिराकर, रॉनी क्लास से बाहर चला जाता है और इस घटना के बाद, दोनों के बीच में हमेशा हमेशा के लिए, बातचीत बंद हो जाती है| सोनू को अपने घर की ग़रीबी का एहसास था| वह पढ़ाई में बिना लापरवाही किए हुए, आगे बढ़ रहा था और दूसरी तरफ़ रॉनी ने, कॉलेज जाना बंद कर दिया था| वह अपने पिता की दी हुई छूट का, नाजायज़ फ़ायदा उठा रहा था| हालाँकि यहाँ रॉनी के पिता की भी पूरी गलती थी| कॉलेज के आख़िरी सेमेस्टर के दौरान, सोनू बिना किसी छात्र को बताए UPSC की परीक्षा पास कर लेता है और कॉलेज ख़त्म होते ही वह ips ऑफिसर बन जाता है| सोनू ने कई सालों तक, अपनी पढ़ाई में मेहनत की थी| वह तो शांत था, लेकिन उसकी सफलता शोर मचा रही थी| सभी शिक्षकों को सोनू पर गर्व था| सोनू इस कॉलेज का सबसे होनहार छात्र कहलाने लगा था| सोनू के अधिकारी बनते ही, उसके माता पिता ख़ुशी से फूले नहीं समाते| सोनू के गाँव में, उसी के चर्चे होने लगते हैं| सोनू के पुलिस अधिकारी बनने से, उसके माता पिता के सारे सपने पूरे हो जाते हैं| सोनू की पहली पोस्टिंग, उसी शहर में होती है, जहां उसका बचपन गुजरा था और उसे सबसे पहला काम, शहर से सारे ग़ैर क़ानूनी धंधों को ख़त्म करने का मिलता है| सोनू बहुत कड़क पुलिस ऑफ़िसर था और वह बचपन से ही, अनुशासित रहता था और वह उसके काम में भी नज़र आ रहा था| सोनू एक हफ़्ते के अंदर, ताबड़ तोड़ एक्शन के साथ कार्यवाही करते हुए, बड़े से बड़े ग़ैरक़ानूनी धंधों को बंद करवा देता है, जिससे पूरे शहर की स्थिति बदल जाती है| शहर से सारे अपराधी पलायन करने लगते हैं| एक दिन अचानक सोनू के पास, एक अनजान व्यक्ति का फ़ोन आता है, जिसमें उसे ख़बर मिलती है कि, एक बहुत पुराना कारख़ाना है| जहाँ बड़ी मात्रा में नशीली दवाओं का उत्पादन किया जा रहा है| ख़बर मिलते ही सोनू अतिरिक्त पुलिस बल के साथ, कारख़ाने में छापा मारने पहुँच जाता है|
सोनू ज़बर्दस्त अंदाज़ में, कारख़ाने के अंदर पहुँच कर सभी को गिरफ़्तार कर लेता है और जैसे ही वह, कारख़ाने के गुप्त तहख़ाने में दाख़िल होता है| उसके सामने एक व्यक्ति नशे में झूम रहा होता है| सोनू उसे ऊपर उठाकर देखता है तो, उसके पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है क्योंकि, उसके सामने उसी का दोस्त रॉनी होता है| उसे यक़ीन ही नहीं होता कि, रॉनी से उसकी मुलाक़ात, इतने बुरे हालातों में होगी| वह रॉनी को उठाने की कोशिश करता है, लेकिन रॉनी को होश नहीं आता| सोनू तुरंत सिपाहियों को आदेश देता है कि, रॉनी को हॉस्पिटल ले जाया जाए और इस कारख़ाने को सील कर दिया जाए| हॉस्पिटल में रॉनी का कई दिनों तक इलाज चलता है| रॉनी के शारीरिक परीक्षण से पता चलता है कि, उसके शरीर के आंतरिक अंग, पूरी तरह सड़ चुके हैं और अब रॉनी का बचना नामुमकिन है| अपने दोस्त की ऐसी हालत देखकर, सोनू को बहुत दुख होता है| वह उसके पिता के बारे में पता लगाता है, लेकिन रॉनी के पिता, एक कार एक्सीडेंट में, कुछ साल पहले मर चुके थे और उसके बाद, रॉनी ही उनके सारे व्यापार का मालिक था, लेकिन उसने अपनी अय्याशी से, सारी फैक्ट्रियों को ताला लगवा दिया और अब ग़ैरक़ानूनी धंधा में, घुस चुका था और उन्हीं ग़लत धंधों ने, उसे क़ानूनन अपराधियों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया था| सोनू अपने दोस्त को बचाने की हर मुमकिन कोशिश करता है और कुछ दिनों के इलाज के बाद, रॉनी को होश आता है और जैसे ही वह, अपने दोस्त को IPS ऑफ़िसर बने देखता है तो, अपने बिस्तर पर ख़ुशी से, उठकर बैठ जाता है और कहता है, “अरे सोनू तुमने तो कमाल कर दिया यार! इतना बड़ा अधिकारी कैसे बन गया”? लेकिन सोनू अपने दोस्त के हालात से टूट चुका था| रॉनी को जवाब देने के लिए, सोनू के पास कोई शब्द नहीं थे| वह, रॉनी पास जाकर, उसका हाथ पकड़ लेता है और कहता है, “रॉनी उस दलदल से, वापस आ जा यार| मैं तेरा साथ दूँगा”| रॉनी सोनू के हाथ में अपना दूसरा हाथ रखता है और कहता है, “हाँ दोस्त! अबसे मैं तेरी बात मानूँगा” और इतना कहते ही, रॉनी की आंखें बंद हो जाती है और वह दुनिया छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए चला जाता है| सोनू को रॉनी की मौत का बहुत पछतावा होता है, क्योंकि उसे बचपन से उसके बारे में सब कुछ पता था, क्योंकि रॉनी की जिंदगी की किताब के सभी पन्ने, सोनू के सामने लिखे गये थे, जिन्हें वह बदल सकता था, लेकिन वह अपने दोस्त को, बचपन में समझा नहीं पाया और कहीं न कहीं, रॉनी की इस हालत के लिए वह, अपने आप को ज़िम्मेदार समझने लगता है| रॉनी की मौत के साथ, इस कहानी (Kids Moral Story) का आख़िरी पन्ना बंद हो जाता है|
Visit for जलपरी की कहानी
कोशिश (Koshish) – Hindi Moral Story
सीख देने वाली कहानी पावर कार (Power car)