प्रेरणा (Prerna) – Friends Story

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प्रेरणा (Prerna) – सफलता की कुंजी कहानी (Friends Story in hindi):

सफलता की कुंजी कहानी– ये कहानी करण और धीरेंद्र की है| दोनों बचपन से ही दोस्त हैं| दरअसल करण के पिता जी, धीरेन्द्र के पिता की कंपनी में, मुनीम का काम करते थे, इसलिए धीरेंद्र के घर, करण का कभी कभी आना जाना होता था और इसी वजह से दोनों में दोस्ती हो चुकी थी, हालाँकि दोनों की दोस्ती से किसी को कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन धीरेंद्र के पिता उसे यह ज़रूर कहते थे कि, “दोस्ती हमेशा अपने स्तर के लोगों से ही करना चाहिए क्योंकि ऊँचे स्तर के लोगों से ही अच्छी प्रेरणा मिलती है” लेकिन, धीरेंद्र हमेशा अपने पिता की बात को नज़रअंदाज़ कर देता था| वह करण को सगे भाई की तरह प्रेम करता था| धीरेंद्र बचपन से फ़ुटबॉल का अच्छा खिलाड़ी था| वह अक्सर अपने कंपनी क्लब में फ़ुटबॉल खेलता रहता था| एक दिन धीरेंद्र को खेलता देख, करण भी फ़ुटबॉल के खेल के प्रति अपनी रुचि ज़ाहिर करते हुए कहता है कि, “क्या तुम मुझे फ़ुटबॉल खेलना सिखाओगे?” धीरेंद्र की बात सुनकर करण हंसने लगता है और कहता है, “यह कोई पूछने की बात है| यह साधारण सा खेल तो, मैं तुम्हें ऐसे ही सिखा दूँगा, लेकिन तुम फ़ुटबॉल सीखकर करोगे क्या? तुम्हें तो बड़े होकर एक अच्छी नौकरी करनी है, ताकि तुम अपने पिताजी का सहारा बन सको|” करण ने धीरेंद्र की बात का उत्तर देते हुए कहा, “मैंने अभी अपने भविष्य का कुछ नहीं सोचा है, लेकिन पता नहीं क्यों, मुझे फ़ुटबॉल के प्रति काफ़ी आकर्षण लगता है| मुझे अपने भविष्य का कुछ पता नहीं, लेकिन मैं फ़िलहाल यह खेल सीखना चाहता हूँ| धीरेंद्र उसे अपने ही क्लब में, रोज़ फ़ुटबॉल खेलने के लिए बुलाने लगता है और कुछ ही दिनों के अभ्यास से, करण को फ़ुटबॉल के बारे में थोड़ा बहुत जानकारियाँ होने लगती हैं और कुछ ही हफ्तों में करण, धीरेंद्र से अच्छा फ़ुटबॉल खेलना सीख जाता है| यह देख धीरेंद्र को बहुत ख़ुशी होती है|

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एक दिन दोनों कंपनी के क्लब में फ़ुटबॉल खेल रहे होते हैं, तभी धीरेंद्र के पिताजी क्लब में दाख़िल होते हैं और करण को धीरेंद्र के साथ क्लब के अंदर खेलता देख, उन्हें ग़ुस्सा आता है| वह धीरेंद्र को ज़ोर से डांटते हुए, खेल रोकने को कहते हैं| धीरेंद्र को अपने पिताजी का बर्ताव अजीब लग रहा था, लेकिन वह संकोच की वजह से कुछ कह नहीं पाता और खेल बंद करके, क्लब के बाहर आ जाता है| करण को अंदर से एहसास हो रहा था कि, धीरेंद्र के पिता को ग़ुस्सा उसी की वजह से आया होगा क्योंकि, उसने बचपन से ही धीरेंद्र के पिताजी के अंदर, अपने प्रति कभी प्यार का एहसास नहीं किया| करण बिना कुछ कहे वहाँ से चला जाता है| अगले दिन जब करण, अपने दोस्त से मिलने पहुँचता है तो, उसे पता चलता है कि, उसके पिताजी ने धीरेंद्र को बिज़नेस की पढ़ाई करने, बाहर भेज दिया है और अब वह वहीं रह कर अपनी आगे की पढ़ाई करेगा| यह बात सुनते ही करण को बहुत दुख होता है| करण की तो मानो सारी दुनिया ही बदल जाती है| उसे आगे का कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था| करण की ज़िंदगी में धीरेंद्र ही एक मात्र सहारा था, जिसकी वजह से उसे हमेशा हिम्मत मिलती थी, लेकिन अब वह अकेला हो चुका था| करण गुमनामी के अँधेरे में खो जाता है| कुछ ही वर्षों में धीरेंद्र, अपने पापा की तरह एक क़ामयाब बिज़नेसमैन बन चुका था, लेकिन उसके जीवन में हमेशा एक खालीपन रहता था| धीरेंद्र को कभी पता ही नहीं चला कि, इतना कुछ होते हुए भी, उसके जीवन में क्या कमी है जो, उसे खल रही है| धीरेंद्र के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी, लेकिन फिर भी उसे खालीपन लगता था| वह अपने काम में अंदर ही अंदर घुटने लगा, जिसके लिए उसने मदिरा पान का सहारा लेना शुरू कर दिया और धीरे धीरे उसे, मदिरा पान की लत लग गई| धीरेंद्र कई कई घंटे चिंता में गुज़ारने लगा| ताज्जुब की बात तो यह थी कि, धीरेंद्र को कभी पता ही नहीं चला कि, उसकी चिंता का कारण क्या है? एक दिन वह, अपने ऑफ़िस में बैठा लोकल समाचार देख रहा था| समाचार में एक बहुत बड़े खिलाड़ी का इंटरव्यू हो रहा था, अचानक धीरेंद्र को लगा कि, “यह तो करण हैं जो, इतना बड़ा फ़ुटबॉल का खिलाड़ी बन गया है|” करण की कामयाबी देख, धीरेंद्र कुर्सी से उछल पड़ता है|

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उसे लगता है जैसे, उसके जीवन की सबसे बड़ी ख़ुशी उसे मिल गई हो| वह करण की बातें ग़ौर से सुनने लगता है| तभी TV इंटरव्यू में करण से सवाल पूछा जाता है कि, “उसे कामयाबी की प्रेरणा कहाँ से मिली| करण जवाब देते हुए कहता है कि, “उसके फ़ुटबॉल खेलने की वजह, उसके बचपन का दोस्त धीरेंद्र है, जिसने उसे बचपन में फ़ुटबॉल सिखाया था और वही उसकी सच्ची प्रेरणा है|” यह सुनते ही धीरेंद्र की आँखों में आँसू आ जाते हैं| वह तुरंत अपने ऑफ़िस से कार लेकर, अकेले ही उसी TV चैनल के ऑफ़िस पहुँच जाता है, जहाँ करण का इंटरव्यू हो रहा था, लेकिन धीरेंद्र को वहाँ पहुँचकर पता चलता है कि, इंटरव्यू पहले रिकॉर्ड किया गया था, जिसके बाद करण स्टेडियम चला गया| शहर में करण का फ़ुटबॉल मैच होने वाला था, जिसके लिए वह आया था| धीरेंद्र तुरंत अपनी कार से स्टेडियम पहुँच जाता है| स्टेडियम में दर्शकों की भीड़ लगी होती है| एक एक करके सभी अंदर जा रहे होते हैं| इसी बीच करण भी बिना टिकट के, अपने रसूखदार छवि की वजह से, स्टेडियम के अंदर दाख़िल हो जाता है और वह सीधे खिलाड़ियों के कमरे में पहुँच जाता है| सभी खिलाड़ियों के बीच में उसकी नज़र, करण पर पड़ती है| वह करण को आवाज़ देता है| करण अपनी खेल की तैयारियों में मसरूफ़ था, लेकिन जैसे ही वह धीरेंद्र को देखता है| उसके चेहरे के हाव भाव बदल जाते हैं| वह तुरंत अपने बचपन के दोस्त को पहचान लेता है और उसके पास भागते हुए आता है और उसे गले लगा लेता है| दोनों एक दूसरे से मिलकर ख़ुश हो जाते हैं| धीरेंद्र, करण से पूछता है, तुम इतने महान खिलाड़ी कैसे बन गए?” करण जवाब देते हुए कहता है, “इसकी प्रेरणा तुम ही हो मेरी दोस्त| तुमने ही मुझे बचपन में फ़ुटबॉल खेलना सिखाया और फ़ुटबॉल से मुझे प्यार हो गया, जिसने मुझे यहाँ तक पहुँचा दिया है और आज मेरी दुनिया ही बदल गई|” धीरेंद्र को एहसास होने लगा था कि, उसका अपने पिताजी के मार्गदर्शन पर चलने का फ़ैसला ग़लत था, जिसकी वजह से वह एक चक्रव्यूह में फँस गया और आज अपनी ज़िंदगी ढो रहा है और वहीं दूसरी ओर करण, उसी से फ़ुटबॉल सीख कर, एक रोमांचक ज़िंदगी का मज़ा ले रहा है| धीरेंद्र, करण को खेलता देख, अपने बचपन को याद करता है और इसी के साथ यह प्रेरणात्मक कहानी ख़त्म हो जाती है|

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