मुर्गी का बच्चा – बच्चों की कहानी इन हिंदी (मुर्गी की कहानी हिंदी में):
बच्चों की कहानी इन हिंदी– मुर्गी की कहानी बच्चों की पसंदीदा कहानियाँ होती हैं यह एक प्रेरक कहानी है| शहर में एक ख़ूँख़ार कसाई था जो, मुर्गियों को उनके बच्चों से अलग करके, मारकर बेच दिया करता था| सभी मुर्गियाँ, कसाई के आतंक से परेशान थी लेकिन, बेचारी मजबूर मुर्ग़ियाँ, कसाई से लड़ने में सक्षम नहीं थी इसलिए, एक एक करके, सभी अपनी ज़िंदगी खोती जा रही थी| मुर्गियों के बाड़े में, जितने भी अंडे होते, कसाई सारे अंडे ले जाकर बेच देता| मुर्ग़ियाँ, इस बात से बहुत दुखी होती थी क्योंकि, उनके बच्चों को, पैदा होने से पहले ही, उनसे अलग कर दिया जाता था| एक दिन, एक मुर्गी ने, अपनी चालाकी से, एक अड्डे को, बाड़े के ही अंदर छुपा दिया और कुछ दिनों के बाद, उसी अंडे से, एक बहुत ही प्यारा, चूजा बाहर निकला| चूज़े को देखते ही, सभी मुर्गियाँ ख़ुश हो गयी| सभी को, चूज़े में, अपना बच्चा नज़र आया, लेकिन मुर्ग़ियों को, इस बात का डर था कि, कसाई इसे भी आकर ले जाएगा इसलिए, उन्होंने चूज़े को, बाड़े से बाहर भेजने का विचार बनाया और रात के अंधेरे में, मुर्गी ने धीरे से, अपने चूज़े को, कसाई की चंगुल से, आज़ाद कर दिया| चूजा बहुत मासूम था| उसे बाहर की दुनिया के बारे में, कोई जानकारी नहीं थी इसलिए, वह फुदकता हुआ, एक पेड़ के नीचे जा पहुँचा| रात का समय था| चारों तरफ़, कीड़े मकोड़ों की आवाज़ें आ रही थी| चूजा डरता हुआ, ज़मीन में बिखरे हुए, पेड़ के पत्तों के नीचे, सहम जाता है| चूजा, सारी रात डर से काँप रहा होता है लेकिन, सुबह होते ही, वह पत्तों से बाहर निकलकर, ज़मीन में फलों के बिखरे हुए दाने, खाने लगता है| इसी बीच, एक कौवा, पेड़ के ऊपर आकर बैठ जाता है और काँव काँव करने लगता है|
दरअसल चूज़े को देखकर, उसे ताज्जुब होता है कि, “इतने घने जंगल में, मुर्गी का बच्चा, अकेले कैसे घूम रहा है?” अगले ही पल, वह कांव कांव करता हुआ, चूज़े के पास पहुँच जाता है| चूज़े ने पहली बार, अजीब से पक्षी को देखा था इसलिए, चूजा डर जाता है और पीछे हटने लगता है लेकिन, कौवा चूज़े से कहता है, “तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं| मैं तुम्हें नुक़सान नहीं पहुंचाऊंगा| बल्कि, मैं तो यह जानना चाहता हूँ कि, तुम यहाँ, क्या कर रहे हो और यहाँ, अकेले कैसे पहुँचे?” चूजा घबराते हुए कहता है कि, “मुझे मेरी माँ ने, अपने से दूर किया है ताकि, मैं कसाई के हाथों, मारा ना जाऊँ|” कौवा, चूज़े की बात सुनते ही, ज़ोर ज़ोर से हँसने लगता है और कहता है, “मैं तो समझ रहा था कि, मुर्गियों की ज़िंदगी, बढ़िया होती होगी क्योंकि, इंसान तुम्हें, खाते हैं तो, कम से कम, तुम्हें कुछ खिलाते तो हैं लेकिन, हमें तो, कोई खाता नहीं, इसलिए हमारी, किसी को चिंता भी नहीं| तुम देख रहे हो, आसमान में पहले, मेरी तरह, कितने कौवे उड़ा करते थे लेकिन, आज इंसानों ने, अपने फ़ायदे के लिए, जंगलों को काटकर, हमारी संख्या कम कर दी है जिससे, हम जैसे कई पक्षी, विलुप्त हो चुके हैं|” कौवे की बात सुनकर चूजा, सोच में पड़ जाता है|
उसे समझ में नहीं आता कि, “उसकी ग़ुलामी बेहतर थी, या आज़ादी|” क्योंकि, दोनों ही जगह इन्सान, पक्षियों का, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से, शोषण करने वाले थे| चूजा, कौवा से पूछता है, “क्या, मैं तुम्हारे साथ रह सकता हूँ?” कौवा उसे समझाता है कि, “तुम्हें प्रकृति ने, ज़मीन में रहने के लिए ही बनाया है| तुम किसानों के खेतों की, रक्षा करने हेतु, कीड़े मकोड़े खाने के लिए, बने हो| तुम्हें, प्रकृति के प्रति, अपनी ज़िम्मेदारी तो निभानी ही पड़ेगी| चूज़े को, कौवे से, जीवन की बहुत बड़ी सीख मिली थी| चूजा तय करता है कि, “वह अब प्रकृति के प्रति, अपना फ़र्ज़ पूरा करेगा| फिर चाहे, भले ही इसके लिए, उसकी जान चली जाए लेकिन, अब वह, ग़ुलामी में नहीं जीएगा|” और फुदकते हुए चूज़ा, अपनी नई ज़िंदगी की पारी खेलने निकल जाता है|
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